कन्नड़ लेखिका Banu Mushtaq की कहानी ने रचा इतिहास

कन्नड़ लेखिका Banu Mushtaq की कहानी ने रचा इतिहास
कन्नड़ लेखिका Banu Mushtaq की कहानी ने रचा इतिहास

बानू मुश्ताक पहली कन्नड़ लेखिका हैं जिन्हें वार्षिक बुकर पुरस्कार मिला है। इस ऐतिहासिक

पल के बारे में बोलते हुए बानू मुश्ताक ने कहा कि यह एक ही आसमान को रोशन करने वाले

हजारों जुगनूओं जैसा अनुभव है। इसके अलावा यह 2022 में गीतांजलि श्री और अनुवादक

डेज़ी रॉकवेल की टॉम्ब ऑफ़ सैंड (रेत समाधि) के बाद यह अंतर्राष्ट्रीय सम्मान जीतने वाली

दूसरी भारतीय पुस्तक है। कर्नाटक की कन्नड लेखिका बानू मुश्ताक ने इतिहास रच दिया है।

बानू मुश्ताक की लघु कहानी संग्रह “हार्ट लैंप” ने अंतर्राष्ट्रीय बुकर प्राइस जीता है। लंदन में

अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतने वाली ये पहली कन्नड़ किताब बनी है। इस पुरस्कार को

बानू मुश्ताक ने मंगलवार की रात को हुए एक कार्यक्रम में अपनी अनुवादक दीपा भस्थी के

साथ हासिल किया है। दीपा भस्थी ने इसका कन्नड़ से इंग्लिश में अनुवाद किया था।

महिलाओं के जीवन, जाति, शक्ति और उत्पीड़न के बारे में बात करने वाली लेखिका बानू

मुश्ता क कर्नाटक से ताल्लुक रखती है। उन्हें ये पुरस्कार 77 वर्ष की उम्र में मिला है। बानू

मुश्ताक पहली कन्नड़ लेखिका हैं जिन्हें वार्षिक बुकर पुरस्कार मिला है। इस ऐतिहासिक

पल के बारे में बोलते हुए बानू मुश्ताक ने कहा कि यह एक ही आसमान को रोशन करने

वाले हजारों जुगनूओं जैसा अनुभव है। इसके अलावा यह 2022 में गीतांजलि श्री और

कन्नड़ लेखिका Banu Mushtaq की कहानी ने रचा इतिहास

अनुवादक डेज़ी रॉकवेल की टॉम्ब ऑफ़ सैंड (रेत समाधि) के बाद यह अंतर्राष्ट्रीय सम्मान

जीतने वाली दूसरी भारतीय पुस्तक है। उनके लेखन का सफ़र मिडिल स्कूल में शुरू हुआ

जब उन्होंने अपनी पहली लघु कहानी लिखी। हालाँकि उन्होंने बहुत कम उम्र में ही लिखना

शुरू कर दिया था, लेकिन जब उनकी पहली कहानी 26 साल की उम्र में लोकप्रिय कन्नड़

पत्रिका प्रजामाता में प्रकाशित हुई तो लोगों का ध्यान उनकी ओर गया। एक बड़े मुस्लिम

परिवार में जन्मी, उन्हें अपने पिता से बहुत समर्थन मिला, यहाँ तक कि जब उनके स्कूल

की तानाशाही प्रकृति के खिलाफ़ उन्होंने लड़ाई लड़ी। मुश्ताक की शानदार लेखनी कर्नाटक

में प्रगतिशील आंदोलनों से उपजी है, जिसने उनके लेखन को प्रेरित किया। उन्होंने विभिन्न

राज्यों की यात्रा की और खुद को बंदया साहित्य आंदोलन में शामिल किया, जो जाति और

वर्ग उत्पीड़न को चुनौती देने वाला एक प्रगतिशील विरोध था। संघर्षरत लोगों के जीवन

से उनका जुड़ाव उन्हें लिखने की ताकत देता था।

 

 

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